हमारा देश भारत अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और सहिष्णुता की परंपरा के लिए विश्वभर में सम्मानित रहा है। “विविधता में एकता” हमारी पहचान रही है। किंतु आज का परिदृश्य कुछ और ही कहानी कहता है। देश में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, आपसी वैमनस्य, जातीय व धार्मिक कट्टरता, अलगाववाद, भ्रष्टाचार और बढ़ती असहिष्णुता जैसे हालात हमें सोचने पर विवश कर रहे हैं।
लोकतंत्र जनता की भागीदारी और संवेदनशीलता पर टिका होता है, परंतु जब लोकतंत्र भीड़तंत्र में बदलने लगे तो स्थिति भयावह हो जाती है। छोटी-छोटी बातों पर समाज का धर्म, जाति और प्रांत के आधार पर बंट जाना राष्ट्र की एकता और अखंडता को चुनौती देता है। कहीं धरना-प्रदर्शन है, कहीं घेराव, तो कहीं दुर्घटनाओं और हिंसा का भय। सवाल उठता है—क्या भारत इसी मार्ग पर चलता रहेगा? क्या हमारा भविष्य लीबिया, लेबनान या सीरिया जैसे देशों की ओर बढ़ रहा है?
इतिहास गवाह है कि भारत ने हर संकट से उबरकर नई दिशा पाई है। यही विश्वास आज भी हमें आश्वस्त करता है कि वह सुबह जरूर आएगी, जब—

- महिलाएं सुरक्षित होंगी और सम्मानपूर्वक जीवन जिएंगी।
- समाज नफरत से नहीं, सद्भाव और सहयोग से संचालित होगा।
- धर्म रहेगा, किंतु धर्मांधता नहीं।
- जातिवाद और प्रांतीय भेदभाव समाप्त होंगे।
- और भारत शांति व समृद्धि की राह पर अग्रसर होगा।
यह परिवर्तन केवल कानून और शासन से संभव नहीं है। इसके लिए हमें अपने भीतर झांकना होगा, नैतिक मूल्यों को पुनर्जीवित करना होगा और नई पीढ़ी में भाईचारे व सहिष्णुता के संस्कार डालने होंगे। यदि नागरिक स्वयं आगे आकर उदाहरण प्रस्तुत करें, तो निश्चय ही नफरत पर प्रेम और हिंसा पर शांति की विजय होगी।
भारत की आत्मा कभी कट्टरता में नहीं, बल्कि करुणा और सद्भाव में रही है। अतः हमें विश्वास रखना चाहिए—वह सुबह कभी तो आएगी, जब यह देश समृद्ध, सुरक्षित और प्रेमपूर्ण वातावरण में आगे बढ़ेगा और हर नागरिक गर्व से कहेगा—“मैं भारतीय हूं।”
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आर. एस. शर्मा विशेष आमंत्रित सदस्य भिलाई शहर जिला कांग्रेस कमेटी