यह लेख उन सभी माता-पिता को समर्पित है जो अपने बच्चों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करते हैं, और उन बच्चों के लिए एक संदेश है जो अभी भी समय है – अपने माता-पिता की कद्र करें। माता-पिता जीवन की अमूल्य धरोहर  है

पेपर में अखबारों में टीवी चैनलों मेंआए दिन दिए समाचार प्रमुखता से सुनते हैं एवं अखबार मेंछपता है की बेटे बहु ने अपने मां को  मारपीट करके घर से निकाला पिता को वृद्ध आश्रम में भेजा संपत्ति से बेदखल किया उनके पैसों को बैंकों से जबरदस्ती ले लिया गया

क्या पश्चिमी सभ्यता आज भारत में अपना स्थान ले रही है ऐसा क्यों हो रहा है आज भारत के सभ्य समाज में ऐसा क्यों हो रहा हैबुजुर्ग माता-पिता को बच्चों द्वारा घर से बाहर निकालना एक गंभीर और दुखद मुद्दा है, जो कई बार होता है। यह एक सामाजिक समस्या है जहाँ बच्चे अपनी जिम्मेदारियों से बचते हैं, जिससे माता-पिता को घर से बेदखल होना पड़ता हैइस पर एक चिंतन  जरूरी है

रात के सन्नाटे में जब सारा संसार सो जाता है, तो एक मां अपने आंसुओं से तकिया भिगोती है। वह सोचती है – “क्या यही दिन देखने के लिए मैंने अपनी जवानी के सारे सुख त्याग दिए थे? क्या इसी के लिए मैंने रात-रात भर जा परगकर उन्हें पाला था?” आज वही संतान जिसके लिए उसने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उसे बोझ समझकर घर से निकाल रही है।

यह कहानी आज हर दूसरे घर की है। बुजुर्ग माता-पिता को घर से निकालना, उन्हें वृद्धाश्रम भेजना या फिर उनकी उपेक्षा करना – यह सब हमारे समाज की बढ़ती समस्या बन गई है।

जीवनभर की तपस्या का यही परिणाम?

एक माता-पिता अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करते? मां अपनी भूख छोड़कर बच्चों को खिलाती है, पिता अपनी इच्छाएं दबाकर बच्चों की हर फरमाइश पूरी करता है। रात में बुखार आने पर मां की नींद उड़ जाती है, बच्चे की पढ़ाई के लिए पिता दो-दो नौकरियां करता है।

बचपन में जब बच्चा चलना सीखता है तो गिरने पर मां उसे उठाती है। जब वह बोलना सीखता है तो उसकी तुतली बोली सुनकर माता-पिता खुश होते हैं। स्कूल जाते समय, खेलते समय, हर कदम पर वे उसकी रक्षा करते हैं।

फिर क्यों आज वही बच्चा बड़े होकर अपने माता-पिता को बोझ समझने लगता है? क्यों वह भूल जाता है कि जब वह असहाय था तो उन्होंने उसे सहारा दिया था?

संस्कारों में आई कमी

हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता को देवता के समान माना गया है। “मातृ देवो भव, पितृ देवो भव” – यह हमारे वेदों की शिक्षा है। लेकिन आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में, पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में, हम अपनी मूल संस्कृति को भूलते जा रहे हैं।

आज के बच्चे अपनी व्यस्तता का बहाना बनाकर माता-पिता से दूर हो जाते हैं। बहू-बेटे को लगता है कि बुजुर्गों की देखभाल करना उनकी जिम्मेदारी नहीं है। वे भूल जाते हैं कि यही माता-पिता ने उन्हें इस काबिल बनाया है कि आज वे अपना घर चला सकते हैं।

कर्म का चक्र

जीवन में जो भी हम करते हैं, वह हमारे पास वापस आता है। यदि आज आप अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, तो कल आपके बच्चे भी आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे। यह प्रकृति का नियम है।

जो बच्चे अपने माता-पिता को घर से निकालते हैं, एक दिन उन्हें भी अपने बच्चों का ऐसा ही व्यवहार झेलना पड़ेगा। क्योंकि बच्चे वही सीखते हैं जो वे अपने घर में देखते हैं।

माता-पिता की अमूल्यता

माता-पिता इस संसार में सबसे कीमती रत्न हैं। उनका प्यार निस्वार्थ होता है, उनका आशीर्वाद जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है। उनके अनुभव हमारे लिए मार्गदर्शक हैं, उनकी सीख हमारे जीवन की दिशा तय करती है।

बुढ़ापे में जब वे शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं, तो वह समय होता है जब उन्हें हमारे प्यार और देखभाल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। यह वह समय है जब हम उनके द्वारा किए गए त्याग का कर्ज चुका सकते हैं।

संस्कारों की वापसी

बच्चों को बचपन से ही माता-पिता का सम्मान करना सिखाना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि माता-पिता की सेवा करना धर्म है, कर्तव्य है।

संयुक्त परिवार की भावना

आजकल के एकल परिवारों में रिश्तों की गर्माहट कम हो गई है। संयुक्त परिवार की भावना को वापस लाना होगा जहां बुजुर्गों का सम्मान होता है।

आर्थिक सुरक्षा

माता-पिता की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि वे किसी पर बोझ न महसूस करें। उन्हें स्वतंत्रता देनी चाहिए और साथ ही देखभाल भी करनी चाहिए।

समय देना

व्यस्त जीवन में भी माता-पिता के लिए समय निकालना चाहिए। उनसे बात करना, उनकी समस्याएं सुनना, उनके साथ समय बिताना – यह सब उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

अंतिम संदेश

माता-पिता हमारे जीवन की जड़ें हैं। जिस तरह पेड़ की जड़ें सूख जाएं तो पेड़ मर जाता है, उसी तरह माता-पिता के बिना हमारा जीवन अधूरा है। उनका साथ हमारे लिए सबसे बड़ी संपत्ति है।

आज का युवा यह समझे कि माता-पिता की सेवा करना केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि सौभाग्य है। जिन्हें यह अवसर मिलता है, वे वास्तव में भाग्यशाली हैं।

आइए, हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम अपने माता-पिता का सम्मान करेंगे, उनकी सेवा करेंगे और उन्हें वह प्यार देंगे जिसके वे हकदार हैं। क्योंकि एक दिन हम भी बूढ़े होंगे और तब हमें भी अपनी संतान से वैसे ही प्यार की अपेक्षा होगी।

“मां की ममता और पिता का प्यार, यही तो है जीवन का सबसे बड़ा उपहार।”


आरएस शर्मा

प्रियदर्शनी परिसर पूर्व सुपेला भिलाई

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